सोनकच्छ।मध्यप्रदेश में ई-अटेंडेंस व्यवस्था को लेकर शिक्षा विभाग में गंभीर असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई है। एक ओर लोक शिक्षण संचालनालय (DPI) भोपाल द्वारा जारी आदेश में ई-अटेंडेंस को अनिवार्य नहीं बताया गया है, वहीं दूसरी ओर मैदानी स्तर पर कुछ जिलों और विकासखंडों में ई-अटेंडेंस नहीं लगाने वाले शिक्षकों एवं कर्मचारियों का वेतन रोकने के निर्देश जारी किए जा रहे हैं। इस विरोधाभासी स्थिति को लेकर शिक्षक संगठनों में भारी रोष व्याप्त है।लोक शिक्षण संचालनालय द्वारा जारी आदेश में स्पष्ट उल्लेख है कि “हमारे शिक्षक” ई-गवर्नेंस प्लेटफॉर्म के अंतर्गत ई-अटेंडेंस एक प्रोत्साहन योजना है। इसमें सहभागिता करने वाले शिक्षकों को विशेष उपलब्धि के रूप में माना जाएगा तथा इसका उल्लेख उनकी सेवा पुस्तिका में किया जाएगा। आदेश में कहीं भी ई-अटेंडेंस को अनिवार्य करने अथवा इसे न लगाने पर दंडात्मक कार्रवाई करने का कोई प्रावधान नहीं है।इसके बावजूद विकासखंड शिक्षा अधिकारी, सोनकच्छ (जिला देवास) द्वारा दिनांक 16 दिसंबर 2025 को जारी पत्र में नवंबर 2025 में ई-अटेंडेंस नहीं लगाने वाले लोक सेवकों का वेतन रोकने के निर्देश दिए गए हैं। पत्र में यह भी कहा गया है कि जिन कर्मचारियों की उपस्थिति शून्य दर्शित है, उनका वेतन आहरण नहीं किया जाए।इस स्थिति से शिक्षकों और कर्मचारी संगठनों में भारी असंतोष देखा जा रहा है। शिक्षकों का कहना है कि जब स्वयं वरिष्ठ कार्यालय (DPI) ने ई-अटेंडेंस को अनिवार्य नहीं किया है, तो विकासखंड स्तर पर वेतन रोकने जैसे आदेश नियमों एवं सेवा शर्तों के विरुद्ध हैं।इसी क्रम में शिक्षकों की ओर से समस्त जिलों के जिला शिक्षा अधिकारी (DEO), विकासखंड शिक्षा अधिकारी (BEO), संकुल प्राचार्य, प्राचार्य एवं प्रधानाध्यापकों से विनम्र अपील की गई है कि—किसी भी शिक्षक या विद्यालय को ई-अटेंडेंस लगाने के लिए बाध्य न किया जाए।न ही वेतन कटौती अथवा वेतन रोकने की धमकी दी जाए।शिक्षकों ने चेतावनी दी है कि यदि ई-अटेंडेंस के नाम पर नोटिस या वेतन संबंधी दंडात्मक कार्रवाई की जाती है, तो वे माननीय उच्च न्यायालय की शरण लेने के लिए स्वतंत्र होंगे। ऐसी स्थिति में वरिष्ठ कार्यालय (DPI) स्वतः सुरक्षित रहेगा, क्योंकि उसके आदेश में अनिवार्यता या दंड का कोई उल्लेख नहीं है।अब शिक्षा विभाग के समक्ष सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि—जब नीति प्रोत्साहन की है, तो ज़मीनी स्तर पर दंडात्मक कार्रवाई क्यों की जा रही है?वेतन किसी भी कर्मचारी का मौलिक एवं संवैधानिक अधिकार होता है। इसी वेतन से शिक्षक अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं, मकान किराया अथवा होम लोन, वाहन की किस्तें, बच्चों की पढ़ाई और दैनिक आवश्यकताओं का निर्वहन होता है। बिना लिखित आदेश और स्पष्ट नीति के वेतन रोकना शिक्षकों को मानसिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ित करने जैसा है।इस विषय में जिला शिक्षा अधिकारी हरि सिंह भारती ने बताया कि सीपीई द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में दिए गए निर्देशों के आधार पर ई-अटेंडेंस नहीं लगाने वाले शिक्षकों का वेतन रोकने के आदेश जारी किए गए हैं। ऊपर से कोई आदेश नहीं है।
ई-अटेंडेंस को लेकर शिक्षा विभाग में असमंजसDPI के आदेश में अनिवार्यता नहीं, फिर भी वेतन रोकने के निर्देश — शिक्षक संगठनों में रोष

