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1 Jan 2026, Thu

जो सांसों की लहर में जीता है वह आनंदित हो जाता है- सद्गुरु मंगल नाम साहेब

देवास। देह खत्म हो गई, देह का नाश हो गया। तो फिर स- वर्ग ही रह जाता है। सिर्फ हवा ही हवा रह जाती है। हवा भी बहने वाली। स- वर्ग स्वर्ग का मतलब श्वास जहां रूकती है। जो बदबू मारता है, जहां गंदगी का ढेर लगा हो, जहां कीड़े पड़ गए हो। वह नरक है। जिसे हम सहन नहीं कर पाते। उसकी बारीकी हम सहन नहीं कर पाते। बढाई तो दूर की बात। लेकिन अगर 200- 200 किलोमीटर तक का नरक हो तो हम कैसे सहन कर पाएंगे। जो सांसों की लहर में जीता है, वह अपने आप आनंदित हो जाता है। यह विचार सद्गुरु मंगल नाम साहेब ने सदगुरु कबीर सर्वहारा प्रार्थना स्थलीय सेवा समिति मंगल मार्ग टेकरी द्वारा आयोजित गुरु शिष्य चर्चा, गुरुवाणी पाठ में व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा कि सांसों की उपासना, साधना करने वाला स- वर्ग का उपासक होता है। वह हमेशा सुखी रहता है, वह हमेशा स्वर्ग में ही रहता है। स्वर्ग की चाहत, खुशबू है, जो ऊंचाई है। वह आनंदित करने वाली है। परिणाम उसके आनंदित हैं। जो स्वांस की उपासना करने वाला होता है। वह सारे वर्गों से ऊपर उठकर जीता है। दुनिया की झंझटों, बुराइयों से हट जाओ तो आप स्वर्ग में ही हो। आप अपने को इन बुराइयों से हटा नहीं पाते हैं। जिससे कि तुम स्वर्ग में होते हुए भी तुम्हें स्वर्ग महसूस नहीं होता। सबके हटने के बाद बाकी जो शेष बच जाता है वही स्वर्ग है। सारे झंझटों से मुक्ति का नाम मोक्ष हैं। हम जिसको भी देखेंगे, जिसको भी सुनेंगे, समझेंगे। लेकिन जो सांसारिक झंझटों में फंसे हुए हैं। उनको हम सुखी कैसे कहेंगे। जो सब झंझटों से हट गया। अपने आप को जो पहचान गया वहीं इस सांसारिक जगत में सुखी रह सकता है। यह जानकारी सेवक वीरेंद्र चौहान ने दी।