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31 Dec 2025, Wed

बैलगाड़ी से उतरकर स्वयंभू प्रतिष्ठित हुए विद्यनहर्ता, चार सौ वर्ष पूर्व अपने आप विराजे श्रीगणेश


शहर से लगभग 17 किलोमीटर दुर, भोपाल रोड पर स्थित बाबा भंवरनाथ कि नगरी भौंरासा अपने  आप में अनेक ऐतिहासिक एवं पौराणिक संदर्भो, स्थलों को समेटे हुए हैं, इन्हीं में से एक है स्वयंभू श्रीगणेश। नगर के बीचों-बीच गणेश मोहल्ला क्षेत्र में गणेश धाम मंदिर मे स्वयं भू स्थापित श्री गणेश की प्रतिमा संभवत संसार में पहली गणेश प्रतिमा होगी, जो किसी के द्वारा स्थापित नहीं की गई है, अपितु स्वयं भू स्थापित हो गई है। दूर-दूर से श्रद्धालु इस चमत्कारी स्वयंभू प्रतिमा के दर्शन करने आते हैं, स्वयंभू श्री गणेश भक्तों की मनोकामनाएं भी पूर्ण करते है। नगर में किसी के यहां पर विवाह समारोह या शुभ कार्य होते है, तो उक्त मांगलिक कार्य की पहली पाती श्री सिद्ध विनायक गणेश के यहां पर रखना कोई नहीं भुलता. बेजोड़ कारीगरी से निर्मित स्वयंभू श्री गणेश की प्रतिमा के जो भी दर्शन करता है। एकटक देखता ही रह जाता है, इस चमत्कारी प्रतिमा के बारे में कई प्रामाणिक किस्से सुनने में आते है। जनसम्पर्क विभाग में कार्यरत महेश कारपेन्टर एवं भौंरासा के पत्रकारगण, पुजारीगणों एवं वृद्धजनों के कथनानुसार इस अदभूत, अति प्राचीन और चैतन्य प्रतिमा की स्थापना का वर्णन सुनाते कहते है. करीब 400 वर्षो पूर्व कुछ लोग जयपुर से बैलगाड़ी में प्रतिमा बागली ले जाने के लिए आए थे, अधिक समय हो जाने के कारण बागली प्रतिमा ले जा रहे श्रद्धालु रात्रि विश्राम के लिए नगर के नाथू गिरी गोस्वामी जी के मठ में ठहर गए. प्रतिमा को बैलगाड़ी में ही रखा रहना दिया, इन श्रद्धालुओं ने  सुबह उठकर देखा तो प्रतिमा बैलगाड़ी से उतरकर अपने आप मठ में विराजमान थी। श्रद्धालुओं ने बागली ले जाने के लिए  उठाने का प्रयास किया,  प्रतिमा उठना तो दूर, हिली तक नहीं, आखिरकार थकहार कर वे श्रद्धालु खाली हाथ बागली लौट गए। इस चमत्कारी घटना के उपरांत  महंत तथा नगरवासियों ने विधि विधान से स्वयंभू प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की गई। गणपति उत्सव के दिनो में यहां भक्तजनों की खासी भीड़ रहती है। आसपास क्षेत्र से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शनार्थ आते है। भगवान गणेश सभी की मनोकामना पूर्ण करते है।