देवास। जहां नाम प्रकट होता है, नाम का उपासक होता है, साधक होता है। वंहा उसके आस पास पाप-ताप का नाश हो जाता है। पाप- ताप का प्रलय हो जाता है। पाप ताप नष्ट हो जाते हैं। जैसे चिनगी आग की पड़े पुरानी घास। जो पाप पुण्य रूपी तालाब, घड़े भरे हुए हैं लोगों के पास। उनसे मुक्त होने के लिए लोग अपनी जिद्द छोड़ते नहीं है। कि यह मेरा है, यह मैं हूं। जबकि सद्गुरु के पास तो नींद रखने तक की जगह नहीं है। तो पाप और पुण्य कहां रहेंगे। मनुष्य अपने अंदर दुनिया भर के कूड़ा करकट सोच, विचार, परेशानी झंझट खड़ी कर लेता है। यह विचार सद्गुरु मंगल नाम साहेब ने गुरु पूर्णिमा महोत्सव को लेकर सदगुरु कबीर सर्वहारा प्रार्थना स्थली मंगल मार्ग टेकरी पर आयोजित गुरु शिष्य चर्चा, गुरुवाणी पाठ में व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा कि जैसे हम कहीं यात्रा कर रहे हैं तो हम सफर में होते हैं। कि इतने किलोमीटर दूर हैं। जब हम किलोमीटर से शून्य किलोमीटर पर पहुंचेंगे तभी तो पता चलेगा कि उस शहर में उस गांव में हम पहुंच गए हैं। वैसे ही जब तक सद्गुरु की शरण में नही जाओगे तब तक कैसे पता चलेगा।

